राजस्थान में राजनीति के भंवर में उलझे रिश्ते

जयपुर। राजनीति में उतरने की कीमत रिश्तों को भी चुकानी पड़ती है। ठीक ऎसा ही हो रहा है राजस्थान की सीटों पर। कहीं पर भाई-भाई आमने-सामने हैं तो कहीं बेटे और बेटी के चलते पिता को सीट छोड़नी पड़ी। तो कहीं "पितृहठ" के चलते बेटे को भी सजा मिली। एक और पत्नी का राजनीतिक भविष्य पति के भरोसे है तो एक और ससुर की विरासत को बचाने की जिम्मेदारी बहू को मिली है। दूसरी और दो भाई है जो "विश्वाघात" का बदला लेने के लिए लड़ रहे हैं।

संतानों से हारे पिता
राज्य की चूरू सीट पर भाजपा से चार बार सांसद रहे रामसिंह कस्वां को अपने बेटे के लिए पार्टी से समझौता करना पड़ा। इस समझौते के तहत भाजपा ने उनके बेटे राहुल को यहां से टिकट दे दिया। हालांकि रामसिंह कस्वां एक बार फिर मैदान में उतरना चाहते थे लेकिन क्षेत्र में घटती लोकप्रियता के चलते उन्हें पीछे हटाना पड़ा। इसी तरह पाली से कांग्रेस सांसद बद्री जाखड़ को अपनी बेटी मुन्नी गोदारा के लिए चुनाव मैदान से हटना पड़ा। जाखड़ भी दोबारा चुनाव मैदान में उतरना चाहते थे लेकिन पार्टी ने उनकी बेटी को टिकट दे दिया। जाखड़ के सामने भाजपा ने पीपी चौधरी को मैदान में उतारा है।

पिता का हठ, बेटे की मजबूरी

दूसरी और रेतीले धोरों की राजनीति अपने पूरे चरम पर है। वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह को जब अपने बाड़मेर से भाजपा ने टिकट नहीं दी तो वे बागी होकर मैदान में उतर गए। इसके चलते उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। जिले के शिव से विधायक और जसवंत सिंह के बेटे मानवेन्द्र को पिता का साथ देने के आरोप में पार्टी ने बाहर कर दिया। अब ये देखना रोचक होगा कि पिता-पुत्र की जोड़ी क्या करती है।

गढ़ बचाने की जद्दोजहद
वहीं कांग्रेस का गढ़ माने जानी वाली झुंझुनूं सीट से इस बार कांग्रेस ने राजबोला ओला को राहुल गांधी के फॉर्मूले के तहत टिकट दिया। राजबाला के सामने चुनौती है कि वह अपने ससुर शीशराम की सीट को बचा पाती है या नहीं। उनके सामने भाजपा से संतोष अहलावत और आप से लेफ्टि. जनरल राज काद्यान है। बांसवाड़ा में तो लड़ाई और भी रोचक है। यहां पर पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे महेन्द्रजीत सिंह मालवीय अपनी पत्नी रेशम मालवीय को टिकट दिलाने में कामयाब रहे। लेकिन उनके सामने चुनौती है कि वे अपनी पत्नी को संसद पहुंचा पाते है या नहीं। गौरतलब है कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले बांसवाड़ा और डूंगरपुर में भाजपा ने जोरदार जीत दर्ज की थी।

क्या गुल खिलाएंगे मीणा भाई
पूर्वी राजस्थान की दौसा और टोंक-सवाई माधोपुर को राजपा नेता डॉ.किरोड़ी लाल मीणा ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। पहले तो वे केवल अपने भाई जगमोहन मीणा को ही चुनाव लड़ाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने भाजपा और कांग्रेस दोनों से बात की। दोनों ने हां कही। इस पर जगमोहन ने सरकारी सेवा से वीआरएस भी ले लिया लेकिन ऎन मौके पर उन्हें टिकट नहीं दिया गया। इस पर किरोड़ी ने भाई को टोंक-सवाई माधोपुर से राजपा से मैदान में उतार दिया। वहीं खुद दौसा से चुनाव लड़ रहे है। किरोड़ी का कहना है कि कांग्रेस ने उनका भरोसा तोड़ा। देखना दिलचस्प होगा कि 16 मई को प्रदेश की जनता क्या नतीजें देती है।

Post a Comment

और नया पुराने