वसुंधरा की बड़ी चिंता किसे मंत्री बनाए, किसे नहीं ?

जयपुर - भारी बहुमत के साथ राजस्थान की सत्ता में वापसी करने के बाद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए मंत्रिमंडल का गठन जी का जंजाल बन गया है। वसुंधरा के सामने दुविधा है कि लोकसभा चुनावों से पहले वह राज्य की जनता के सामने अच्छी छवि पेश करे, ताकि इसका फायदा पार्टी को मिले।

पार्टी और वसुंधरा को इस बात का अच्छे से अहसास है कि किसी भी प्रकार की नाराजगी आम चुनाव से पहले भारी पड़ सकती है। राजे के सामने पुराने और वरिष्ठ नेता हैं जो इस बार भी मंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं। इनमें गुलाब चंद कटारिया, घनश्याम तिवाड़ी, नंदलाल मीणा, कैलाश मेघवाल जैसे दिग्गज शामिल हैं। दूसरी ओर नए नवेले लेकिन कांग्रेस के धुरंधरों को पटखनी देने वाले युवा हैं। इनमें दीया कुमारी, मानवेन्द्र सिंह, कैलाश चौधरी, प्रहलाद गुंजल और ओम प्रकाश हुडला आदि शामिल हैं।

प्रदेश के संभाग से ये जता रहे हैं कैबिनेट में दावेदारी

जयपुर संभाग

विधानसभा सीटों के लिहाज से जयपुर राज्य का सबसे बड़ा संभाग है। इसमें 50 विधानसभा सीटें आती हैं। इसमें 36 पर भाजपा काबिज हैं। इस लिहाज से सबसे ज्यादा दावेदार भी यहीं से हैं। जयपुर शहर की सीटों से जहां राजपालसिंह शेखावत, नरपतसिंह राजवी, कालीचरण सर्राफ, घनश्याम तिवाड़ी और अरूण चतुर्वेदी जैसे प्रमुख दावेदार हैं, वहीं ग्रामीण सीट से राव राजेन्द्र सिंह और रामलाल शर्मा कतार में हैं। अलवर से हेमसिंह भड़ाना और जसवंत यादव मंत्री पद के दावेदार हैं। झुंझुनूं से संुदरलाल को भी मंत्री बनाया जा सकता है।

भरतपुर संभाग

संभाग की 19 में से 12 सीटों पर भाजपा ने परचम लहराया। संभाग की सवाई माधोपुर सीट से डॉ. किरोड़ी लाल मीणा को शिकस्त देने वाली दीया कुमारी भी मंत्री पद की प्रबल दावेदार हैं। वहीं पूर्व मंत्री डॉ. दिगम्बर सिंह के हारने के कारण उनकी अनुपस्थिति में पूर्व केन्द्रीय मंत्री नटवर सिंह के बेटे जगतसिंह को मंत्री पद दिया जा सकता है।

बीकानेर संभाग

यहां की 24 में से 17 सीटें भाजपा के कब्जे में हैं। यहां से राजेन्द्र राठौड़, सुरेन्द्रपाल टीटी, विश्वनाथ मेघवाल, अभिषेक मटोरिया को मंत्री पद से नवाजा जा सकता हैं।

कोटा संभाग

कोटा संभाग की 17 में से 16 सीटें भाजपा के पाले में हैं। खुद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी इसी संभाग से हैं। यहां से ओम बिड़ला, प्रभुलाल सैनी, प्रतापसिंह सिंघवी, चन्द्रकांता मेघवाल, प्रहलाद गुंजल और भवानीसिंह राजावत मंत्री पद के दावेदार हैं।

जोधपुर संभाग

सीटों के लिहाज से दूसरे स्थान पर आने वाले जोधपुर संभाग ने मुख्यमंत्री राजे की पेशानी पर सबसे ज्यादा बल डाल दिए हैं। यहां की 33 में से 30 सीटों पर भाजपा ने विजय हासिल की। सबसे ज्यादा उलटफेर भी इसी संभाग में हुआ। कांग्रेसी दिग्गजों को हराने वाले युवा भाजपा विधायक भी यहीं से हैं। गजेन्द्रसिंह खींवसर, मानवेन्द्र सिंह, कैलाश चौधरी और नारायण सिंह देवल दावेदार हैं।

उदयपुर संभाग

उदयपुर संभाग में भाजपा ने 2008 में मिली करारी शिकस्त को पीछे छोड़कर इस बार जोरदार जीत हासिल की। आगामी लोकसभा चुनावों में भी इस क्षेत्र मे जीत दर्ज करने के लिए भाजपा यहां से आए विधायकों को मंत्री बनाकर माहौल अपने पक्ष में बनाए रखना चाहेंगी। यहां से वरिष्ठ भाजपा नेता गुलाबचन्द कटारिया, श्रीचन्द कृपलानी, किरण माहेश्वरी, नंदलाल मीणा प्रमुख दावेदारों में हैं।

अजमेर संभाग

अजमेर से कांग्रेस का सफाया करने वाली भाजपा के लिए यहां स्थिति कुआं और खाई वाली है। ये संभाग मुख्य रूप से जाट समुदाय के प्रभुत्व वाला है। इस संभाग को अगर मंत्रिमंडल में पर्याप्त जगह नहीं मिलती है तो लोकसभा चुनावों में पार्टी को कीमत चुकानी पड़ सकती है। यहां से सांवरलाल जाट, युनूस खान, कालूलाल गुर्जर, कैलाश मेघवाल, अजय सिंह कीलक प्रमुख दावेदार हैं। वहीं वासुदेव देवनानी और अनिता भदेल में से किसी एक को मौका दिया जा सकता है।

मंत्रिमंडल के गठन में ये फैक्टर करेंगे काम

जातिगत समीकरण : मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए मंत्रिमंडल गठन में सबसे बड़ी परेशानी जातिगत समीकरणों का संतुलन बनाए रखना है। भाजपा के लिए सर्वाधिक विधायक जाट और राजपूत जातियों से आते हैं। इनमें से किसी को भी नजरअंदाज करना लोकसभा चुनावों में भारी पड़ सकता है। इसके अलावा ब्राह्मण, वैश्य और आरक्षित वर्गो के प्रतिनिधियों को भी संयोजित करना टेढ़ी खीर है।

वरिष्ठ और युवा नेताओं में संतुलन : मंत्रिमंडल के गठन में वरिष्ठ नेताओं के साथ ही पहले मंत्री रह चुके नेताओं को प्राथमिकता देना जरूरी है। वहीं विपक्षी पार्टियों के दिग्गजों को पटखनी देकर विधानसभा में कदम रखने वाले युवा विधायकों को भी मंत्रिमंडल में जगह देना आवश्यक है।

आरएसएस से तालमेल : पार्टी नेताओं के साथ ही आरएसएस पृष्ठिभूमि रखने वाले नेताओं को जगह देना भी जरूरी है। आरएसएस पृष्ठभूमि वाले कितने नेताओं को मंत्री पद दिया जाए ये सबसे बड़ा प्रश्A हैं।

महिलाओं को प्रतिनिधित्व : भाजपा विधायक दल में इस बार महिलाओं की भी बड़ी संख्या है। उन्हें भी मंत्रिमंडल में शामिल करना आवश्यक हैं। महिला होने के नाते मुख्यमंत्री राजे पर विशेष्ा रूप से इस बात को लेकर दबाव होगा।

मंत्रिमंडल की संख्या : राजे के लिए सबसे बड़ी परेशानी मंत्रिमंडल की संख्या को लेकर हैं। राज्य में मंत्रिमंडल की संख्या 30 तक हो सकती है, लेकिन इतने से पदों में 163 विधायकों को खुश करना काफी जद्दोजहद का काम हैं। हो सकता है कि राजे इसके लिए कई बार मंत्रिमंडल में फेरबदल करने का रास्ता निकाल सकती हैं।

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